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सोमवार, फ़रवरी 26, 2018

"धारण त्रिशूल कर दुर्गा बन" (चर्चा अंक-2893)

सुधि पाठकों!
सोमवार की चर्चा में 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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सबसे पहले गुरु जी के ब्लॉग की पोस्ट.. 


आज घर की पुरानी अलमारी में 
जीर्ण-शीर्ण अवस्था में 
1970 से 1973 तक की 
एक पुरानी डायरी मिल गयी।
जिसमें मेरी यह रचना भी है-
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फूलों की मुझको चाह नहीं,
मैं काँटों को स्वीकार करूँ।
चन्दन से मुझको मोह नहीं,
ज्वाला को अंगीकार करूँ।।

सागर पर जिनने पुल बाँधा,
नल-नील भले ही खो जाये।
मैं सिन्धु सुखाने वाले,
कुम्भज का आदर मनुहार करूँ...

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फागुन में तुम याद आए 

purushottam kumar sinha  
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मर-मर के जीने वाले......... 

डॉ. अमिताभ विक्रम द्विवेदी 

विविधा.....पर yashoda Agrawal 
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कभी कुछ कहना चाहो,  
तो कह देना,  
मैं बुरा नहीं मानूंगा,  
अच्छा ही लगेगा मुझे... 

कविताएँ पर Onkar 

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मुक्त मुक्तक : 877 - गूँगी तनहाई.......

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मान 

noopuram at नमस्ते -  

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Main samay hun... 

आह! 


राकेश कुमार श्रीवास्तव राही  at  
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नन्ही कोपल पर कोपल कोकास 

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मेरी धरोहर पर yashoda Agrawal 

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Tribute to Shridevi. 


Nitish Tiwary at iwillrock:nitish tiwary's blog. 

12 टिप्‍पणियां:

  1. राधा जी, आभार,सुन्दर प्रस्तुति,इस चर्चा में सम्मलित सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  2. सब तक पहुंच नही पाया अभी तक
    पर जितने भी लिंक पर गया हूँ अच्छा लगा

    सुंदर चर्चा

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बहुत धन्यवाद । इतनी सुंदर चर्चा और अलग अलग रंगों की रचनाओं के साथ स्थान देने के लिए ।

    जीवन का हर रंग चोखा हो !
    रंग भरी शुभकामनाएं !
    सभी लिखने और पढ़ने वालों के लिए ।

    जवाब देंहटाएं
  4. पापा की परियां

    कंधो पर झूलती बेटियों की किलकारियां
    शरारत से जेब से सिक्के चुराती तितलियां
    लेटे हुऐ बाप पर छलांग लगाती शहजादियां
    टांगों पर झूले झूलती यह जन्नत की परियां

    सोचता हूं बार बार सोचता हूं
    बाप बेटियों को कितना प्यार करता होगा
    सुबह सुबह जब काम के लिये निकलता होगा
    दिल में नामालूम सी कसक तो रखता होगा
    उसके जहन में ख्यालात कहर मचाते होंगे
    सुबह देर तक सोई बेटी के माथे को चूमना
    जल्द उठने पर उसको साथ पार्क ले जाना
    कभी उदास मन से बालकनी में तन्हा छोड़ जाना

    बाप कितना प्यार करता होगा आखिर कितना ?
    वक्त ही कितना होता है कितनी तेज है जिंदगी
    वो रुकना चाहता है लेकिन वो रुक नहीं सकता
    कभी कभी तो गली के नुक्कड़ से मुड़ते हुऐ
    एक नजर डालने के लिये भी वो रुक नहीं सकता
    उसे जाना होता है फिर लौट आने के लिये,

    जवाब देंहटाएं
  5. बूढ़ा इंतज़ार

    उस टीन के छप्पर मैं
    पथराई सी दो बूढी आंखें

    एकटक नजरें सामने
    दरवाजे को देख रही थी

    चेहरे की चमक बता रही है
    शायद यादों मैं खोई है

    एक छोटा बिस्तर कोने में
    सलीके से सजाया था

    रहा नहीं गया पूछ ही लिया
    अम्मा कहाँ खोई हो

    थरथराते होटों से निकला
    आज शायद मेरा गुल्लू आएगा

    कई साल पहले कमाने गया था
    बोला था "माई'' जल्द लौटूंगा

    आह : .कलेजा चीर गए वो शब्द
    जो उन बूढ़े होंठों से निकले।

    जवाब देंहटाएं
  6. तेरा बाबा

    बूढे बाबा का जब चश्मा टूटा
    बोला बेटा कुछ धुंधला धुंधला है
    तूं मेरा चश्मां बनवा दे,
    मोबाइल में मशगूल
    गर्दन मोड़े बिना में बोला
    ठीक है बाबा कल बनवा दुंगा,
    बेटा आज ही बनवा दे
    देख सकूं हसीं दुनियां
    ना रहूं कल तक शायद जिंदा,
    जिद ना करो बाबा
    आज थोड़ा काम है
    वेसे भी बूढी आंखों से एक दिन में
    अब क्या देख लोगे दुनिया,
    आंखों में दो मोती चमके
    लहजे में शहद मिला के
    बाबा बोले बेठो बेटा
    छोड़ो यह चश्मा वस्मा
    बचपन का इक किस्सा सुनलो
    उस दिन तेरी साईकल टूटी थी
    शायद तेरी स्कूल की छुट्टी थी
    तूं चीखा था चिल्लाया था
    घर में तूफान मचाया था
    में थका हारा काम से आया था
    तूं तुतला कर बोला था
    बाबा मेरी गाड़ी टूट गई
    अभी दूसरी ला दो
    या फिर इसको ही चला दो
    मेने कहा था बेटा कल ला दुंगा
    तेरी आंखों में आंसू थे
    तूने जिद पकड़ ली थी
    तेरी जिद के आगे में हार गया था
    उसी वक्त में बाजार गया था
    उस दिन जो कुछ कमाया था
    उसी से तेरी साईकल ले आया था
    तेरा बाबा था ना
    तेरी आंखों में आंसू केसे सहता
    उछल कूद को देखकर
    में अपनी थकान भूल गया था
    तूं जितना खुश था उस दिन
    में भी उतना खुश था
    आखिर "तेरा बाबा था ना"

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर चर्चा. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत विस्तृत चर्चा आज की ...
    आभार मेरी रचना को जगह देने के लिए ...

    जवाब देंहटाएं
  9. चर्चामंच पर पहली बार मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार आदरणीया राधा तिवारी जी। आज इस मंच पर मेरी उपस्थिति काफी समय के बाद है। स्तरीय रचनाकारों के मध्य अपने आप को देखकर अच्छा अनुभव हो रहा।
    आज लग रहा मेरी नियति अकेले चलते रहना नहीं है आप सब का स्नेहाशीष है। आशा करती हूँ ये स्नेह अनवरत चलेगा।
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं

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