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मंगलवार, अगस्त 08, 2017

"सिर्फ एक कोशिश" (चर्चा अंक 2699)

मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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गीत  

"भाई-बहन का प्यार" 

हरियाला सावन ले आया, नेह भरा उपहार।
कितना पावन, कितना निश्छल राखी का त्यौहार।।

यही कामना करती मन में, गूँजे घर में शहनाई,
खुद चलकर बहना के द्वारे, आये उसका भाई,
कच्चे धागों में उमड़ा है भाई-बहन का प्यार।
कितना पावन, कितना निश्छल राखी का त्यौहार... 

उच्चारण 

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बातों वाली गली 

आप सबकी, ज़िद, दुआओं और रुझान प्रकाशन की असीम अनुकम्पा से मेरी कहानियां अब पुस्तक रूप में आपके पास पहुंचने को बेताब हैं. लेकिन पहुंचेंगी तभी, जब आप इन्हें मंगवायेंगे 😖 बहुत से साथी ऑर्डर कर चुके हैं, जिन्होंने नहीं किया, उम्मीद है वे भी जल्दी ही प्रति मंगवाने का बंदोबस्त करेंगे. मैं आज आप लोगों से भी खुल के किताब खरीदने की अपील कर पा रही हूं, क्योंकि मैने किताबें हमेशा ही खरीद के पढ़ने की आदत डाली है, खासतौर से अपने दोस्तों की किताबें. जब नामचीन लेखकों की किताबें हम खरीद के पढ़ते हैं तो अपने दोस्तों की किताब ही मुफ़्त में क्यों पाना चाहेंगे... 
वन्दना अवस्थी दुबे 
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पनामा दस्तावेज़ रिसाव ! 

पढ़कर आश्चर्य ,विकलता द्वेष अद्द्भुत अविश्वसनीय अकल्पनीय नहीं लगा ।अब आदत सी हो गई है ,अब आशा प्रबल हो गई की हम आप से बेहतर कर सकते हैं - भले ही वह भ्रष्टाचार कदाचार व्यभिचार अत्याचार ही क्यों न हो .. 
udaya veer singh 
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मशीन अनुवाद -- 3 

मशीन अनुवाद की प्रक्रिया जटिल ज़रूर है लेकिन उपयोग करने वाले के लिए बहुत ही सहज है. अगर हम आलोचना करने पर उतर आयें तो फिर हर चीज़ कि आलोचना की जा सकती है क्योंकि पूर्ण तो एक मनुष्य भी नहीं होता है फिर मशीन कि क्या बात करें? ये मनुष्य ही है जो अपने कार्य को त्वरित करने के लिए मशीन को इनता अधिक सक्षम बना रहा है. आज मैं इसके द्वारा किये जाने वाले और भी पक्ष को प्रस्तुत करने की कोशिश कर रही हूँ... 
मेरा सरोकार पर रेखा श्रीवास्तव 
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यह भी कोई बात हुई 

ये शब्द जो तुमको ही हैं समर्पित, 
ये सब कितने हैं भ्रान्त, 
और तुम हो इतने शान्त? 
यह भी कोई बात हुई... 
pragyan-vigyan पर Dr.J.P.Tiwari 
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किताबों की दुनिया - 137 

नीरज पर नीरज गोस्वामी 
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एक पंद्रह अगस्त यहां भी मना 

लेकिन झंडा नहीं फहरा, 

स चली ताकि बच्चियां स्कूल ना छोड़ें 

अग्निवार्ता पर Ashish Tiwari  
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फीकी पड़ गई 

सावन की मनभावन रंगत ! 

मेरे दिल की बात पर Swarajya karun  
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754 

प्रेम-सुरभित  पत्र
 डॉ कविता भट्ट
(हे न ब गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर (गढ़वाल), उत्तराखंड
 1
कितना भी जीवन खपा लो, अब तो सच्चा मित्र नहीं मिलता

हृदय-उपवन को महका दे जो, वो मादक इत्र नहीं मिलता
शब्द-ध्वनि-नृत्य-घुले हों जिसमें, अब वो चलचित्र हुआ दुर्लभ 
उर को सम्मोहित कर दे जो, अब रंगीन चित्र नहीं मिलता
2
जूठे बेर से भूख मिटा ले जो, अब वो भाव विचित्र नहीं मिलता
शिला-अहल्या बोल उठी जिससे, अब वो राम-चरित्र नहीं मिलता... 

4 टिप्‍पणियां:

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