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बुधवार, दिसंबर 21, 2016

चर्चामंच 2563; पानी भर कर चोंच में, चिड़ी बुझाये आग-


मैं तो रही बुझाय, आग पर डालूं पानी 

रविकर 
पानी भर कर चोंच में, चिड़ी बुझाये आग ।
फिर भी जंगल जल रहा, हंसी उड़ाये काग।
हंसी उड़ाये काग, नहीं तू बुझा सकेगी।
कहे चिड़ी सुन मूर्ख, आग तो नहीं बुझेगी।
किंतु लगाया कौन, लिखे इतिहास कहानी।
मैं तो रही बुझाय, आग पर डालूं पानी ।। 

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"रँगे हुए हैं स्यार" 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

रूपचन्द्र शास्त्री मयंक 
थूक-थूककर चाटते, उनका क्या आधार।
जंगल में जनतन्त्र केरँगे हुए हैं स्यार।।
--
सभी दलों के सदन मेंथे प्रतिकूल विचार।
इसीलिए होती सदालोकतन्त्र की हार।।
--
दाँव-पेच के खेल सेचलता है जनतन्त्र।
बिना लोक के फल रहालोकतन्त्र का मन्त्र।।

4 टिप्‍पणियां:

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