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बुधवार, जून 08, 2016

कालाधन वापस लाने में मज़ा ही मज़ा है; चर्चा मंच 2367

ईंट ईंट घर की दरकने लगी 
नीव खुद-ब-खुद ही सरकने लगी 
बात जब बदलने लगी शोर में 
छत दरो दिवार चटकने लगी... 

स्वप्न मेरे ... पर Digamber Naswa 
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मेरा वजूद बदलता दिखाई देता है 

प्रेमरस पर Shah Nawaz 
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मुमकिन 

Sunehra Ehsaas पर 
Nivedita Dinkar 

देवलिश -  

भारत में एक नई भाषा की खोज! 

Ravishankar Shrivastava 

क्यूँकि लाखों हैं यहाँ स्वाँग रचाने वाले..... 

कुँवर कुसुमेश 

yashoda Agrawal 

कहानी : डर 

Arun Roy 

ऊँचे-ऊँचे लोगों के अब... 

आनन्द विश्वास 

तेवर 

Asha Saxena 

Satish Saxena 

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को  

खुली चिट्ठी 

haresh Kumar 

Sushil Bakliwal 

नैतिकता 

*(2012 की एक रचना)* 
नैतिकता का पतन इसे या कह दूँ कत्ले आम हो गया। 
भ्रष्टाचार फले फूले अपनाए उसका नाम हो गया... 
हृदयपुष्प पर राकेश कौशिक 
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आँगन का नीम 
गिरिजा कुलश्रेष्ठ 

कालीपद "प्रसाद" 

तेरी छत से चाँद निकलना जारी है 

Naveen Mani Tripathi 
डा. गायत्री गुप्ता 'गुंजन' 
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रमजान मुबारक! 

Vineet Verma 

जेहन से एक उछला पत्थर 

महेश कुशवंश 

किताबों की दुनिया -126 

नीरज गोस्वामी 

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सिंगापुर यात्रा संस्मरण 

भाग 3. 

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सरिता भाटिया 
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घर मेरा है बादलों के पार .... 

दिन-रात सुबह -शाम भोर -साँझ कुछ नहीं बदलते 
दोनों समय का नारंगी पना..... 
उजली दोपहर अँधेरी काली आधी रात हो 
सब चलता रहता है अनवरत सा .... 
सब कुछ वैसे ही रहता है बदलता नहीं है ! 
किसी के ना होने या होने से ....  
नयी उड़ान + पर Upasna Siag  

hindigen पर रेखा श्रीवास्तव
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कार्टून :-  

कालाधन वापस लाने में मज़ा ही मज़ा है 


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बालकविता  

"काक-चेष्टा को अपनाओ"  

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

housecrowjpg
रंग-रूप से लगता काला।
दिखता बिल्कुल भोला-भाला।।

जब खतरे की आहट पाता।
काँव-काँव करके चिल्लाता... 

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