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बुधवार, अप्रैल 27, 2016

"हम किसी से कम नहीं" (चर्चा अंक-2325)

मित्रों
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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हम किसी से कम नहीं 

Akanksha पर Asha Saxena 
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"कवि और कविता" का 

लोकार्पण सम्पन्न हुआ"  

दिनांक 24-04-2016 को हल्द्वानी के  होटल आमोर के सभाकक्ष में
स्व. मोहनचन्द्र जोशी के काव्य संग्रह "कवि और कविता" 
का लोकार्पण सम्पन्न हुआ।
जिसका प्रकाशन 29 वर्षों के बाद 
स्व. मोहनचन्द्र जोशी 
के ज्येष्ट पुत्र गिरीश जोशी जी ने कराया है।
 
लोकार्पण समारोह के मुख्य अतिथि प्रो. गोविन्द सिंह 
(निदेशक-उत्तराखण्ड मुक्त विश्विद्यालयहल्द्वानी) रहे 
तथा अध्यक्षता खटीमा के साहित्यकार डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंकने की ।
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लेबल 

Sunehra Ehsaas पर 
Nivedita Dinkar 
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गीतिका 

*नव पीढ़ी को आज, चमक का शौक लुभाता*  
गिरा शाख से पात, कहो फिर क्या जुड़ पाता 
कड़वाहट के बोल, कभी मत बोलो प्यारे 
जग लेता वह जीत, विनय से जो झुक जाता 
जीवन है इक राह, कदम मत रुकने देना 
मन के जीते जीत, हृदय भी यह समझाता 
नदी गई है सूख, पनप जाते हैं पौधे 
ढूँढे मिले न नीर, कलश रीता रह जाता 
हम से ही है रीत, जमाना भी हमसे है 
बनता वह अनमोल, जो दया धर्म निभाता 
मधुर गुंजन पर ऋता शेखर मधु 
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पर्यावरण सुधारना है तो  

कड़ाई करनी ही पड़ेगी 

आपको क्यों नहीं सुनाई पड रहा कि सी.एन.जी. के स्टीकरों की काला बाजारी हो रही है ? तो क्यों नहीं ऐसी गाड़ियों को भी इस स्कीम के तहत बंद रखा जाए ? उन जुगाडुओं की पहचान और रोक-थाम का कोई उपाय है जो रोज अपनी नंबर प्लेट बदल अपनी गाडी सड़क पर उतार देते हैं ? या फिर गलियों-गलियों से होते हुए कहीं भी पहुंचने वाले, रोके जाने पर भाग जाने वाले, पैसे के बल पर दोनों नंबर की गाड़ियां रख सड़क पर भीड़ बढ़ाने वालों पर शिकंजा या नकेल डालने का कोई उपाय है... 
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा 
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तुम बिन माँ ! 

Yeh Mera Jahaan पर 
गिरिजा कुलश्रेष्ठ 
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इस प्यार को क्या नाम दूँ...? 

काथम पर प्रेम गुप्ता `मानी'  
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II आओ चलो खो जाएँ II 

जलधि की तरंग में जीवन की उमंग में 
फूलों के रंग में प्रीतम के संग में II 
आओ चलो खो जाएँ II 
मधुर संगीत में प्यार के गीत में 
दिल के मीत में अपनों की जीत में II 
आओ चलो खो जाएँ... 
कविता मंच पर Hitesh Sharma 
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नमन नमन नमन 

चलती फिरती ज़िंदगी की भीड़ में खामोश हो गई 
इक ज़िंदगी मौत की चादर ओढ़े 
माटी में मिलने को तैयार तोड़ सब रिश्ते नाते 
अपने बंधन मुक्त छोड़ गई ... 
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi 
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ये जाति वंश का भेद 

मैं करण हूं मुझे याद है 
अपनी भूलों पर मिले हर श्राप पर 
मैं मुक्त हो चुका था हर श्राप से। 
मैंने तो बस सब कुछ लुटाया ही था 
किसी से कुछ नहीं मांगा, 
अपनी मां से भी नहीं। 
हे कृष्ण तुम साक्षी हो....  
मैं नहीं जानता ये वंश भेद का श्राप 
मुझे किसने दिया... 
kuldeep thakur 
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"कवि और कविता की समीक्षा" 

(समीक्षक-डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

....गिरीश चन्द्र जोशी ने अपने पिता की इच्छा को पूर्ण करते हुए उनकी कविताओं को कृति के रूप में पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया है। कहा जाता है कि समय से पहले कुछ भी सम्भव नहीं होता, “देर आयद-दुरुस्त आयद” इस कार्य में चाहे भले ही विलम्ब हुआ हो लेकिन स्व. मोहन चन्द्र जोशी जी की आत्मा जहाँ भी होंगीजरूर प्रसन्न होकर अपे शुभाशीषों की वर्षा करती होंगी कि उनके पुत्र ने उनकी अभिलाषा को मूर्तरूप दिया है।
स्व. मोहन चन्द्र जोशी जी की विविध आयामी कृति कवि और कविताएक ऐसा काव्य संग्रह है जिसमें एक कोमल अहसास और अनुभूति का दिग्दर्शन होता है जो पाठकों के हृदय पर अपनी छाप जरूर अंकित करेगा.... 

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