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शुक्रवार, अप्रैल 15, 2016

''सृष्टि-क्रम'' (चर्चा अंक-2313)

मित्रों
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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सर्प सर्प और सर्प । ये सुनते ही देह में सिहरन आ जाती है । कोई भी ऐसा शख्स नहीं होगा जो सर्प से न डरता हो । कोई भी इंसान सर्प के सामने नहीं आना चाहता । वजह साफ है की इसके डंस से सभी भयभीत हो जाते है । तो फिर क्या सर्प डंस ने मारे तो क्या करे ? यही तो उसके हथियार है जिसके सहारे वह अपनी रक्षा करता है । सर्प के पास कोई हाथ तो होती नहीं । ये कई किस्म के होते है । जहरीले से लेकर प्यारे । शायद ही मनुष्य को सभी किस्मों की जानकारी हो । सर्प का निवास सभी जगह है । चाहे पानी या जमीन हो या पेड़ पौधे या घर द्वार... 
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सीमित जमीं सीमित आकाश 

डॉ. अपर्णा त्रिपाठी  
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185 : ग़ज़ल -  

खलबली 

आज उसकी ही बात लग गई बुरी हमको ॥  
जिसकी बातें थीं बुरी से बुरी भली हमको... 
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दशा और दिशा  
Laxmirangam: दशा और दिशा:  
 मेरा पहला प्रकाशन ' दशा और दिशा ' 
ऊपर दिए लिंक पर उपलब्ध है 
आपका ब्लॉग 
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"हार नहीं मानूँगा" 
जब तक तन में प्राण रहेगा, हार नहीं माँनूगा।
कर्तव्यों के बदले में, अधिकार नहीं माँगूगा।।
टिक-टिक करती घड़ी, सूर्य-चन्दा चलते रहते हैं,
अपने मन की कथा-व्यथा को, कभी नहीं कहते हैं,
बिना वजह मैं कभी किसी से, रार नहीं ठाँनूगा।
 कर्तव्यों के बदले में, अधिकार नहीं माँगूगा... 
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पिछले वर्ष आज ही के दिन 

मैं अनाथ हो गया था 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

"माँ आपको कभी नहीं भुला पाऊँगा"
पिछले वर्ष आज के ही दिन
आपका भौतिक शरीर 
पञ्चतत्व में विलीन हो गया था।
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माँ ममता का रूप है, पिता सबल आधार।
मात-पिता सन्तान को, करते प्यार अपार।।
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बचपन मेरा खो गयाहुआ वृद्ध मैं आज।
सोच-समझकर अब मुझे, करने हैं सब काज।।
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जब तक मेरे शीश पररहा आपका हाथ।
लेकिन अब आशीष काछूट गया है साथ।।

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