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बुधवार, जनवरी 27, 2016

आए सुख- समृद्धि, शान्ति से ध्वजा थामना-चर्चा मंच 2234


रविकर 
"कुछ कहना है"



मना मना जन गण मना, लोकपर्व गणतंत्र।
किन्तु मना षडयंत्र, सदा रहिये चौकन्ना।
हारेगा आतंक,  बचेगा कहीं नाम ना।

बहुत बहुत शुभकामना, किन्तु मना षडयंत्र।

बने राष्ट्र सिरमौर, यही तो दिली तमन्ना।

आए सुख- समृद्धि, शान्ति से ध्वजा थामना।।
--
झुलस रहा है गणतंत्र भी मन का मंथन  पर kuldeep thakur  
तिरंगा तो लहरा रहा है 
सुनो, समझो, कुछ कह रहा है। 
हम भूल रहे हैं संविधान को 
देते हैं गाली राष्ट्र गान को... 
--

गणतंत्र दिवस के पावन पर्व पर हार्दिक बधाई 

शब्द-शिखर पर Akanksha Yadav  


Kunwar Kusumesh 



lokendra singh 



udaya veer singh 

'' एक देशद्रोही का आत्म - कथ्य '' नामक नवगीत , 

स्व. श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - 

'' एक नदी कोलाहल '' से लिया गया है - 

शीश नहीं , हम तो बस सिर्फ़ हैं कबन्ध। 
अपना तो परिचय है - जाफ़र - जयचन्द। 
खड़े हुए काई पर पाँव धरे , 
बड़े हुए मगर बँटे औ ' बिखरे ; 
नाटक के पात्रों - सा रखकर सम्बन्ध... 

दशकों से गणतन्त्र पर्व पर, राग यही दुहराया है।
होगा भ्रष्टाचार दूर, बस मन में यही समाया है।।

सिसक रहा जनतन्त्र हमारा, चलन घूस का जिन्दा है,
देख दशा आजादी की, बलिदानी भी शर्मिन्दा हैं,
रामराज के सपने देखे, रक्षराज ही पाया है।
होगा भ्रष्टाचार दूर, बस मन में यही समाया है।१।


Tarun Thakur 

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
shyam gupta 
Asha Saxena 
रविकर 


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