फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, जनवरी 11, 2016

तिरंगा भरकर कलम में सारे जहाँ में फहरा दो--चर्चा अंक 2218

जय माँ हाटेश्वरी...

हे अर्जुन तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में अधिकार नहीं है, इसलिए तू न तो अपने-आप को कर्मों  के फलों का कारण समझ और न ही कर्म करने में तू 
आसक्त हो। 
कर्म करना और फल की इच्छा न करना ही "निष्काम कर्म-योग यानि भक्ति-योग" है, बिना भक्ति-योग के  भगवान की प्राप्ति असंभव है। 
कर्म का बीज बो देने पर फल का उत्पन्न होना निश्चित ही होता है, फल जायेगा कहाँ? फल तो बीज बोने वाले  को ही मिलेगा, कोई दूसरा तो उस फल को खा ही नहीं सकता है 
तो हमें चिन्ता करने की क्या आवश्यकता है। 
जब हम अपने कर्म एवं दूसरों के हितों को देखते हैं तब हमसे पुण्य-कर्म हो रहा होता है, और जब हम दूसरों का  कर्म एवं अपना हित देखते हैं तब हमसे पाप-कर्म ही 
हो रहा होता है। इसलिये हमें केवल स्वयं के कर्म को ही देखना चाहिये कि हमसे कौन सा कर्म हो रहा है। 
अब चलते हैं...आज की चर्चा की ओर... 
उच्चारण पर रूपचन्द्र शास्त्री मयंक 
--
परप्रवीण पाण्डेय न 
-- 
s640/images%2B%252833%2529   
कलम से.. पर कलम से .... 
--
s320/home_sweet_home
तमाशा-ए-जिंदगी पर Tushar Rastogi 
-- 
मेरी सच्ची बात पर सरिता भाटिया 
--
पहली बार पर Santosh Chaturvedi 
-- 
कभी-कभार पर जयदीप शेखर 
--
Bharat Tiwari 
--
कविताएँ पर Onkar 
--
ई. प्रदीप कुमार साहनी 
-- 

मेरी धरोहर पर yashoda Agrawal 
--
जिनके बगैर हिंदी साहित्य अधूरा है उनमें एक रत्न की तरह शामिल थे रवीन्द्र कालिया। वे  जी हिंदी  के  साठोत्तरी साहित्य  आंदोलन  
के प्रमुख  हस्ताक्षर थे। कल यानी 9 जनवरी 2016 को   दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में उन्होंने जीवन की  अंतिम सांस ली। आज वे भौतिक रूप से चाहे हमारे बीच नहीं है पर उन्हें साहित्य के पाठको ,लेखकों और  प्रेमियों के बीच एक उदार और प्रोत्साहन देने वाले संपादक ,हंसमुख मित्र ,लेखक 
के रूप में सदा याद किया जाता रहेगा। पंजाब की धरती को उन पर हमेशा गर्व रहेगा। उनका यथार्थ लेखन  साहित्य में सदा अमर रहेगा ,ऐसी कामना करते हुए उन्हें विनम्र 
श्रद्धांजलि। 
--
-- 
आपकी सहेली पर Jyoti Dehliwal 
--
 Samaadhan  पर Vivek Surange 
-- 
Abhimanyu Bhardwaj  
--
s320/Palampur%2B4
DAANA PAANI पर 
Vidyut Prakash Maurya 
 
धन्यवाद।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।