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शुक्रवार, नवंबर 13, 2015

"इंसानियत का धर्म"(चर्चा अंक-2159)

आज की चर्चा में आपका हार्दिक स्वागत है। 
हमारे देश में बहुत से धर्म और जातियाें के लाेग रहते है। हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई, सब की अलग-अलग भाषा औरअलग-अलग लिबास है। सब के भगवान अलग-अलग है। सब अपने-अपने भगवान की पूजा करते है। कुछ लाेग इस बात काे नज़र मे रखते हुये देश मे दंगा फ़साद करवाने की काेशिश करते है। यह बात बिलकुल गलत है। वाे यह बात भूल जाते है कि सबसे बड़ा धर्म इंसानियत का है। वाे यह बात भी भूल जाते है कि सब धर्माे के ग्रन्थाें में कितनी अच्छी-अच्छी बातें लिखी हुयी है। जैसे गीता, क़ुरान, बाइबल और गुरु ग्रंथ साहिब। किसी में भी लड़ाई-झगड़े के बारे में नही लिखा हुया है। सब ग्रंथाें में आपस में मिल जुल कर रहने की ही बातें लिखी हुयी है, और सब में एक-दूसरे के साथ इंसानियत निभाने के बारे मे ही लिखा है।
अब चलते है आज की चर्चा की तरफ  .......... 
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मन के मनके 
बहुत ही बे-तुका प्रश्न हो सकता है—लेकिन थोडा ठहर कर देखिये उस आइने में जिसे हम जीवन कहते हैं?
पर ऐसा होता नहीं हैं—उस आइने पर अपने अहम,अपने थोथेपन की धूल पोंछते जाते हैं—कि और-और पा लें फिर इसको साफ करेंगे और फिर अपने खूबसूरत चेहरे को निहारेगें—जो हम निरंतर बदसूरत किये जा रहे हैं.
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 (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 
अन्नकूट पूजा करो, गोवर्धन है आज।
गोरक्षा से सबल हो, पूरा देश समाज।१।
श्रीकृष्ण ने कर दिया, माँ का ऊँचा भाल।
सेवा करके गाय की, कहलाये गोपाल।२।
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सुमन 
आओ दीप जलायें 
 देहरी में मंगल का 
 आँगन में सुख का 
 कमरे में शान्ति का 
वीरेन्द्र कुमार शर्मा 
सनातन वैदिक संस्कृति में जड़ जंगम सभी पूजित हैं। सभी में एक ही चैतन्य तत्व की व्याप्ति बतलाई गई है। दूर्वा (दूर्वा घास ),गंगा ,मानसरोवर सभी हैं पूजित। तुलसी दल का स्पर्श पाकर साधरण खाद्य सामिग्री प्रसाद बन जाती है। सनातन वैदिक संस्कृति में ही केवल प्रसाद की अवधारणा हैं।
प्रवीण चोपड़ा 
एक दिन नहीं, दो दिन नहीं...हमेशा ही ...कोई भी मौका हो...खुशी, गमी, कोई धार्मिक, सामाजिक या आध्यात्मिक पर्व..हर जगह खूब फूल इस्तेमाल हुए होते हैं। मुझे यह देख कर अजीब सा लगता है..
फूल की जगह ही पेड़ पर है, रंग बिरंगे फूल पत्ते आने जाने वाले के मन को खुश कर देते हैं...करते हैं ना?...फिर इन्हें तोड़ने से क्या हासिल...
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स्वदेश भारती
दीपावली की ज्योति-मल्लिका
भर दे जीवन में
आलोक भरा स्नेह, प्यार की सुनहरी भोर
और हो आकांक्षा का विस्तार
यसवंत यश 
हर तरफ फैली 
पटाखों के 
जले बारूद 
की गंध ऐसी लग रही है 
राकेश कौशिक 
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परमेन्द्र प्रताप सिंह 
अदरक आग और पानी का संगम है। नमीदार रहने तक यह अदरक कहलाता है और सूखने-सुखाने के बाद यही अदरक सौंठ बन जाता है। प्रकृृति का यह विचित्र करिश्मा ही कहिए कि इसका रस चाहे जल तत्व वाला है, मगर इसी जल में आग भी भरी हुई है।
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आशा सक्सेना 
आये अकेले इस जग में
जाना कब है पता नहीं है
पर अपनाए गए रिश्तों को
बिना विचारे ढोते ही जाना है
ये रिश्ते बने कैसे
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फ़िरदौस खान 
मेरे महबूब
तुम्हारी आंखों में
मुहब्बत की
जो चमक है
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भारती दास 
निज संस्कृति में बसी दीवाली
खुशियों की है प्रतीक दीवाली
सुन्दर सुखमय दीपों की अवली
रोशन करती घर और देहली
स्नेह के तेल में भीगती है बाती
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आनन्द विश्वास
जगमग सबकी मने दिवाली,
खुशी उछालें भर-भर थाली।
खील खिलौने और बताशे,
खूब बजाएं बाजे ताशे।
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धन्यवाद, 

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