फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, नवंबर 10, 2015

"दीपों का त्योहार" (चर्चा अंक 2156)

आज की चर्चा में आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन है।  शास्त्री जी अस्वस्थ हैं और दिनकर जी व्यस्त है। आज देखिये कुछ चुनिन्दा लिंकों की फटाफट चर्चा। 
*************************
कविता रावत 
पंच दिवसीय दीप पर्व का आरम्भ भगवान धन्वन्तरी की पूजा-अर्चना के साथ होता है, जिसका अर्थ है पहले काया फिर माया। यह वैद्यराज धन्वन्तरी की जयन्ती है, जो समुद्र मंथन से उत्पन्न चौदह रत्नों में से एक थे। यह पर्व साधारण जनमानस में धनतेरस के नाम से जाना जाता है। इस दिन लोग पीतल-कांसे के बर्तन खरीदना धनवर्धक मानते हैं। इस दिन लोग घर के आगे एक बड़ा दीया जलाते हैं, जिसे ‘यम दीप’ कहते हैं। मान्यता है कि इस दीप को जलाने से परिवार में अकाल मृत्यु या बाल मृत्यु नहीं होती।
===============================
मदन मोहन सक्सेना 
मंगलमय हो आपको दीपों का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
लक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार..
===============================
अनुपमा पाठक 
तम के प्रभाव में
दीये का वज़ूद... 
बाती जल रही है फिर भी वहां
कैसे ये अँधेरे मौज़ूद... ??
गगन शर्मा 
कुछ सहज होने के बाद मुझे उन्होंने गोद में लिया और समझाया कि वह उपहार नहीं रिश्वत थी जिसकी आड़ में वह मुझ पर कुछ भी गलत करने का जोर डाल सकता था। उस समय तो बात समझ में आ गयी पर आज जब खुले आम बेशर्मी से रिश्वत लेते-देते देखता हूँ तो कुछ सही-गलत समझ में नहीं आता।
===============================
श्यामल सुमन 
गीत गाते रहे गुनगुनाते रहे
याद करके तुम्हें मुस्कुराते रहे
तेरे सपने सभी मेरे अपने हुए
जिन्हें आँखों में अपनी सजाते रहे
===============================
नवेदिता दिनकर 
क्यों लगता है 
एक दर्द है हमारे प्रेम में 
या 
एक प्रेम है हमारे दर्द में
===============================
दर्शन कौर धनोय
मनिकरण कुल्लू से 45 Km है ।भुंतर इसका नजदीकी एयरपोर्ट हैं । भुंतर के पास ही पार्वती नदी और व्यास नदी का संगम है यही पार्वती नदी का पुल पार्वती घाटी और कुल्लू घाटी को जोड़ता हैं 35 किलोंमीटर का ये विहंगम और खतरनाक रास्ता दिलकश नजरो से भरपूर है।
===============================
राकेश खंडेलवाल 
दीप दीपावली के सजें न सजें
ये अंधेरे नहीं शेष रह पायेंगे
तुम जरा मुस्कुरा दो प्रिये एक पल
दीप अँगनाई में खुद ही जल जायेंगे
===============================
वीरेंदर कुमार शर्मा 
वह आँख की भी आँख है ,देखती आँख नहीं है देखने वाला कोई और है। वह 
जो श्रवण का भी श्रवण है सुनता है वो कान तो उपकरण भर हैं ,वह जो वाक् 
को सम्भाषण देता है वाणी की भी वाणी है ,मन को सोचने की सामर्थ्य देता है
===============================
नवीन मणि त्रिपाठी
चल नकाबो में जमाने की नज़र पाक नहीं ।
कीमती हुश्न ये हो जाए कही ख़ाक नहीं ।।

अजनबी बनके गली से यूँ गुजरना उसका ।
दिल जलाने की थी साजिश ये इत्तिफ़ाक नहीं ।।
===============================
( डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक") 
धनतेरस के पर्व पर, सजे हुए बाज़ार।
घर में लाओ आज कुछ, नये-नये उपहार।।

झालर-दीपों से सजें, आज सभी के गेह।
मन के नभ से आज तो, बरसे मधुरिम नेह।।
दिलबाग वर्क 
युवा रचनाकार दिलबाग सिंह विर्क अनेक साहित्यिक विधाओं के सक्रिय साहित्यकार हैं किन्तु कविता के माध्यम से अपनी बात सशक्त ढंग से कहने में इन्हें महारत हासिल है | समीक्ष्य कृति ' महाभारत जारी है ' से पहले भी इनके पांच कविता संकलन प्रकाशित हो चुके हैं |
===============================
रंगराज 
इस बीच एक बार भुवनेश्वर जाना तय हुआ. चाँपा स्टेशन से एलटीटी – भुवनेश्वर एक्सप्रेस में एसी ।। की टिकट मिली. रात सवा नौ बजे छूटती है – चाँपा से. मैं पौने नौ बजे चाँपा स्येशन पहुँच गया. गाड़ी करीब 2120 बजे आई. बहुत लंबी थी और एसी के
===============================
धन्यवाद, फिर मिलते हैं  ……। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।