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शुक्रवार, नवंबर 06, 2015

"अब भगवान भी दौरे पर" (चर्चा अंक 2152)

मित्रों।
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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गीत "एकता की धुन बजायें" 

एक दीपक तुम जलाओएक दीपक हम जलायें।
आओ मिलकर हम धरा कोरौशनी से जगमगायें।।

आज दूषित सभ्यता कीचल रहीं हैं आँधियाँ,
आग में अलगाव की तोजल रही हैं वादियाँ,
नफरतों को दूर करकेएकता की धुन बजायें।
आओ मिलकर हम धरा कोरौशनी से जगमगायें... 

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अब भगवान भी दौरे पर 

अब भगवान जी भी दौरे करने लगे हैं। विश्वास नहीं हो रहा न, पर यह सच है। 50 हजार करोड़ से ज्यादा की संपत्ति के साथ देश के सबसे अमीर भगवान तिरुपति बालाजी इन दिनों दिल्ली दौरे पर हैं। ये पहला मौका है जब वे अपने पूरे दलबल के साथ आंध्रप्रदेश से बाहर किसी दूसरे राज्य में पहुंचे हैं... 

शब्द-शिखर पर Akanksha Yadav 
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देहरी के अक्षांश पर - 

मेरी नज़र से 

डॉ. मोनिका शर्मा के काव्य संकलन ‘देहरी के अक्षांश पर’ को पढ़ कर एक अनिर्वचनीय विस्मय के अनुभव से गुज़र रही हूँ ! हैरान हूँ कि इस पुस्तक की रचनाओं में व्यक्त नारी की हर वेदना सम्वेदना, हर व्यथा कथा, हर पीड़ा कैसे विश्व के किसी भी भूभाग में, किसी भी देश में, किसी भी शहर में, किसी भी मकान में अपनी मशीनी दिनचर्या में जुटी किसी भी उदास अनमनी गृहणी के मनोभावों की हमशक्ल हो जाती है और किसी भी कविता को पढ़ कर उसके मुख से यही उद्गार प्रस्फुटित होते हैं कि ‘ अरे ! यह तो मेरे ही मन की बात है’ या ‘ऐसा ही तो मेरे साथ भी हुआ है’... 

Sudhinama पर sadhana vaid 
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शब्द 

शब्द की अहम भूमिका के लिए चित्र परिणाम 
भाव न जाने कहाँ से आते 
ह्रदय पटल पर विचरण करते 
आपस में तकरार करते 
मन की भाषा समझते |
शब्द सजग तत्पर हो
कविता को आकार देते
कठिन परिश्रम से ही 
भावों को साकार करते... 

Akanksha पर Asha Saxena
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पेशावर वाली माँ 

सृजन मंच ऑनलाइन

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आक्रोश और बुद्धिजीवी 

सभी के भीतर आक्रोश है। यह मनुष्य होने की निशानी है। आक्रोश की अभिव्यक्ति सभी अपनी-अपनी क्षमता, अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार करते हैं। कर्मचारी अपने बॉस के सामने पूंछ हिलाता है मगर जब साथियों के साथ जब चाय पी रहा होता है तो हर चुश्कि के साथ अपने बॉस के खिलाफ ज़हर उगलता रहता है... 

बेचैन आत्मा पर देवेन्द्र पाण्डेय 
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अपने गंतव्य तक 

पहुंचने को आतुर चिट्ठियां... !! 

पतझड़ भी अपनी सुषमा में... 
वसंत सा प्रचुर... 
उड़ते हुए सूखे पत्ते... 
जैसे चिट्ठियां हों... 
अपने गंतव्य तक पहुंचने को आतुर... 
रंग बिरंगे स्वरुप में... 
संजोये हुए कितने ही सन्देश... 

अनुशील पर अनुपमा पाठक 
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एक प्रेमपत्र 

मुझे तुमसे बहुत कुछ बोलना है! 
तुमको यह लिखते समय 
बहुत खुशी का एहसास हो रहा है| 
शब्द ही नही सामने आ रहे हैं| 
क्या लिखूँ, कितना लिखूँ और कैसे लिखूँ, 
ऐसी स्थिति है| 
भावनाओं की बाढ़ आ रही है... 

Niranjan Welankar 
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कुछ सृजन कर ही जाउंगी .... 


झरोख़ा पर निवेदिता श्रीवास्तव 
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सारे देश मे अमन चैन कायम है 

सिवाय कुछ स्टूडियो को छोडकर 

पता नही कंहा असहिष्णुता नज़र आ रही है लोगों को.एक दादरी में जरुर वहशियाना हत्याकाण्ड हुआ,जिसमे एक व्यक्ति की हत्या हुई.बाद में उसी गांव में मुस्लिम परिवार की लडकी की शादी हिंदूओ ने धूमधाम से कराई.वंहा कोई असहिष्णुता नही है,गोधरा,गुजरात के बाद सुलग उठा गुजरात आज शांत है,दिल्ली समेत सारे में देश में सिक्खो के खिलाफ नफरत की आग अब नज़र नही आती,फिर पता नही कंहा से कुछ लोगों को असिष्णुता नज़र आने लग गई... 

Anil Pusadkar 
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पर जली है जो चिता वह थी मेरे अरमान की 

लोग समझे थे के है वो फ़ालतू सामान की 
पर जली है जो चिता वह थी मेरे अरमान की 
असलियत में इश्क़ फ़रमाना बहुत आसाँ नहीं है 
यहाँ बाज़ी लगी रहती जिगर-ओ-जान की... 

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
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अजब गज़ब विरोध नीति... 

घर में नहीं दाने अम्मा चली भुनाने - गज़ब का सटीक मुहावरा गढ़ा है किसी ने. और आजकल के माहौल में तो बेहद ही सटीक दिखाई दे रहा है. जिसे देखो कुछ न कुछ लौटाने पर तुला हुआ है. किसे? ये पता नहीं। अपने ही देश का, खुद को मिला सम्मान, अपने ही देश को, खुद ही लौटा रहे हैं. बड़ी ही अजीब सी बात लगती है... 

shikha varshney 
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कविता 

 राम को चोट लगे तो रहीम को आंसू आये। 
रहीम को रंजहो तो राम सो न पाये ।। 
गंगा-जमनी तहजीब जहां हरदम विराज करे । 
सभी के लिए दिलों मेंमोहब्बत परवाज करे ... 

कविता मंच पर Rajesh Tripathi  
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आज की दिवाली ... 

हितेश कुमार शर्मा 

...दिवाली का बेसब्री से इंतज़ार 
मन में चाहत , 
कि हो उपहारों की बौछार 
उपहार देने की चाहत का ... 

कविता मंच पर Hitesh Sharma 
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मेरा महत्व कितना है.. 

बोला पुष्प हंस कर निज वृक्ष से 
तुम्हारा महत्व मेरे बिना कुछ भी नहीं है... 
जब खिलता हूं मैं तभी आते हैं सब 
वर्ना तुम्हारे पास मानव तो क्या 
पंछी भी नहीं आते निहारते हैं... 

मन का मंथन पर kuldeep thakur 
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अच्छे दिनों के रंग........ 

मंडी में बिकते,महंगे आलुओं के संग, 
अमीरों के थाल में सजतीं ,महंगी दालों के संग... 

जो मेरा मन कहे पर Yashwant Yash 
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ये हैं अच्छे दिन 

ये है सुशासन 
तुम्हें पता नहीं ये हैं अच्छे दिन 
ये है विकास का मूल मन्त्र 
घर बाहर गाँव नगर 
चुप रहना है तुम्हारी नियति 
सिर्फ सिर झुकाने की अदा तक ही 
तुम्हारी कर्मस्थली 
गर बोलोगे घर से बाहर कदम रखोगे... 

vandana gupta 
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बात बन गई - 

लघुकथा 

जब भी ग्यारहवीं कक्षा का प्रथम दिन रहता, नेहा महापात्र के लिए बहुत जिज्ञासा का दिन रहता| दसवीं के बाद बहुत तरह के संस्कार और माहौल से बच्चे आते जिन्हें समझने में थोड़ा वक्त लग जाता| कुछ शरारती बच्चों से भी पाला पड़ जाता कभी कभी| रजिस्टर लेकर नेहा ने क्लासरूम में प्रवेश किया| वह सर झुकाकर हाजिरी लेने लगी तभी सीटी की आवाज आई... 

मधुर गुंजन पर ऋता शेखर मधु 

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