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सोमवार, अक्तूबर 12, 2015

"प्रातः भ्रमण और फेसबुक स्टेटस" (चर्चा अंक-2127)

मित्रों।
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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कुछ सपने मेरे 
आज एक अजीब सी उलझन, 
कौतुहल, बेचैनी, उद्विग्नता है. 
भारी है मन और उसके पाँव. 
कोख हरी हुई है मन की अभी अभी. 
गर्भ धारण हुआ है अभी अभी 
कुछ नन्ही कोपले फूटेंगी... 
रचना रवीन्द्र पर रचना दीक्षित 
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स्तब्ध, निरुत्तर और निर्जीव!!! 

मुश्किल होता है समझ पाना 
या कि खुद को समझा पाना 
जब आप किसी के साथ चल रहे हो 
और उस के साथ होने का एहसास हो 
और तभी वो बिना कुछ कहे यूँ 
आहिस्ता से आप से दूर चला जाए 
और कुछ भी समझना मुश्किल हो बस 
आप खड़े रह जाए स्तब्ध, 
निरुत्तर और निर्जीव. 
पथ का राही पर musafir 
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तुम और हम - कविता 

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा) 
तुम खूब रहे हम खूब रहे 
तुम पार हुए हम डूब रहे 
अपना न मुरीद रहा कोई 
पर तुम सबके मतलूब रहे ... 
Smart Indian  
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इक शाम..  

तुम्हारे साथ हो... 

जो ख्यालो में भी ना हो, 
ऐसी कोई बात हो... 
बस यूँ ही..इक शाम... तुम्हारे साथ हो...  
तुम कहो कुछ... कुछ कहूँ मैं...  
सभी शिकायते मेरी हो,  
सभी नादानियाँ मेरी हो...  
मैं रूठती रहूँ..... तुम मुझे मानते रहो..  
इक शाम सभी गुस्ताखियाँ, 
मेरी माफ़ हो..  
बस यूँ ही...इक शाम... तुम्हारे साथ हो... 
'आहुति' पर Sushma Verma 
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गंगा-जमुनी संस्कृति पर हमलों का दौर 

राजनैतिक तौर पर कमजोर किए जाने के अलावा
 सांस्कृतिक बहुलता और मेलजोल की परंपरा पर भी 
कुठाराघात हो रहा है।'
दिन.प्रतिदिन ये हमले और तीखे होते जा रहे हैं। 
असहमत बुद्धिजीवियों की हत्याओं 
और खान.पान पर रोक.टोक के जरिये 
पूरे माहौल को घुटन भरा बनाया जा रहा है। 
बहुसांस्कृतिक, बहुलतावादी विचारों में 
रचे.बसे लेखकों पर सांप्रदायिक हमले हो रहे हैं। ...  
Randhir Singh Suman 
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संक्रमण ------------- 

 युग का सबसे संक्रमणकारी दौर है यह हवा में तैरते वायरस कितनी जल्दी बातों के रोग का संक्रमण फैला देते हैं इसका अंदाजा भी नहीं लगता। बेबात पर बात बढ़ जाती है चुप रहने पर बवाल हो जाता है यही तो संक्रमण है खड़ा होता है वह अकेला कवि चारों ओर से घिरा हुआ शक्तिशाली ,तलवारधारी ,बाहुबलियों से और ,अभिमन्यु तो निहत्था है लड़ रहा है अपने शब्दों के बल पर... 
काव्य वाटिका पर Kavita Vikas 
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दिवाली की मिठाई 

मेरे मन की पर अर्चना चावजी  
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संवाद 

पूछती थी प्रश्न यदि, उत्तर नहीं मैं दे सका तो, 
भूलती थी प्रश्न दुष्कर, नयी बातें बोलती थी । 
किन्तु अब तुम पूछती हो प्रश्न जो उत्तर रहित हैं, 
शान्त हूँ मैं और तुमको उत्तरों की है प्रतीक्षा... 
न दैन्यं न पलायनम् पर प्रवीण पाण्डेय 
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वह -  

राकेश रोहित 

दो शब्द पर राकेश रोहित 
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लघुकथा – 
पति 
उसकी उम्र पचास को छू चुकी थी | 
महीना भर पहले ही उसे लकवा मार गया था |  
सो वह अपंग बना खाट पर पडा दिन गुजार रहा था  
परन्तु पत्नी को उसकी पीड़ा पर तनिक भी दुःख न था |
 लोग उसे समझाने आते ,  
‘’ पति है, ऐसे वक्त पर उसकी सेवा करो | 
पति तो देवता तुल्य होता है |’’... 
sochtaa hoon......! 
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हिंदी  
आओ बच्चो सीखे हम 
हिंदी को दे नया जन्म 
क ख ग सीखेगे हम 
फिर हिंदी को हम करे नमन 
ये तो हिंदी की पुकार है 
जो जिन्दगी के उस पार है 
फिर भी हम दिल से कहते है 
ये तो वर्णों का हार है 
वर्ण मिलने से ही बनते शब्द 
जो बोलते है हमारे लब्ज
प्रन्जुल कुमार 
कक्षा -6

अपनाघर ,कानपुर
बाल सजग 
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सोचा कैसे .... 

सियासत में ही लाएँगे युवराज को सीमा का प्रहरी, 
सोचा कैसे ? 
सिर बोझ बहुत है टोपी का अपने ढोयेँ व्यथा देश की , 
सोचा कैसे... 
उन्नयन  पर udaya veer singh 
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अपनी रुस्वाई....... 

अपनी रुस्वाई तेरे नाम का चर्चा देखूँ  
एक ज़रा शेर कहूँ , और मैं क्या क्या देखूँ  
नींद आ जाये तो क्या महफिलें बरपा देखूँ... 
आवारगी पर lori ali 
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कौन कहता है 

भारत भूखा मर रहा है? 

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कहानी अम्मी ...  

अवधेश प्रीत 

लड़की तब भी डरी हुई थी। लड़की अब भी डरी हुई है। इस स्पेशल ट्रेन की बोगी में, जिसे रेलवे ने ‘समर स्पेशल’ के रूप में चलाया था, वह जब दाखिल हुई तो इकलौती यात्राी थी। अपने कूपे में, अपनी लोअर रिजर्व बर्थ पर अपना एयर बैग रखकर बैठने के साथ ही उसके दिमाग में जो पहला ख्याल कौंधा था, वह यह कि उसके सामने और ऊपर वाली बर्थों के यात्री कौन होंगे... 
हम और हमारी लेखनी पर गीता पंडित 
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1 टिप्पणी:

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