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रविवार, अक्तूबर 04, 2015

"स्वयं की खोज" (चर्चा अंक-2118)

मित्रों।
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

दोहे 

"सिद्धिविनायक आपसे, खिली रूप की धूप" 

 
पार्वती-शिव पुत्र का, वन्दन शत्-शत् बार।
आदिदेव कर दीजिए, बेड़ा भव से पार।।
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भगवन मेरी भूल पर, मत हो जाना रुष्ट।।
मेरा मन है बावरा, कभी न हो सन्तुष्ट।।
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हों गणेश जी साथ जब, फिर कैसा सन्ताप।
सकल मनोरथ सिद्ध हों, जहाँ विराजो आप... 
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गाँव 

मुझे याद है 
पूस की कंपकंपाती सुबहों में 
मुंह अँधेरे उठ जाती थी दादी, 
मुझे भी जगा देती थी 
और आँगन के कुँए से 
बाल्टी-भर पानी खींचकर 
उड़ेल देती थी मुझपर 
मेरी तमाम ना-नुकर के बावजूद... 
कविताएँ पर Onkar 
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स्वयं की खोज-  

A Discovery for Self 

palash "पलाश" पर डॉ. अपर्णा त्रिपाठी 
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वह तो हरदम से है कहती आयी... !! 

देखा था तुम्हें एक रोज़ एक झलक भर... 
देखेंगे तुम्हें एक रोज़ जी भर कर... 
मिलोगी न... ??  
कहो ज़िन्दगी... !!  
ज़िन्दगी इस प्रश्न पर मुस्कुरायी... 
वह तो हरदम से है कहती आयी--  
साथ ही हूँ साथ ही होती हूँ  
तुम भूल जाते हो...  
अनुशील पर अनुपमा पाठक 
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अस्तित्व 

अक्टूबर के प्रारम्भ के साथ ही हल्की हल्की सर्दी की दस्तक शुरू हो गयी । यह मिश्रित है । शाम से रात 11 तक कुछ गर्मी कुछ उमस सी रहती है । इसके बाद जैसे सर्दी शरीर से लिपटना शुरू हो जाती है... 
सत्यकीखोज पर RAJEEV KULSHRESTHA 
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मेरी परलोक-चर्चाएँ... (७) 

[बड़े भाग पाया गुर-भेद...] 

'रात गयी और बात गयी'-जैसा मेरे साथ कुछ भी नहीं हुआ। रात तो बेशक गयी, बात ठहरी रही--अपनी अपनी पूरी हठधर्मिता के साथ। हमारी संकल्पना पूरी तरह साकार न हो, तस्वीर वैसी न बने जैसी हम चाहते हों, तो बेचैनी होती है। यही बेचैनी मुझे भी विचलित कर रही थी। जितने प्रश्न पहले मन में उठ रहे थे, वे द्विगुणित हो गए... 
मुक्ताकाश....पर आनन्द वर्धन ओझा 
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नानी 

थकी हारी नानी  बेचारी
टेक टेक  लाठी   चलती थी
राह में ही रुक जाती थी
बार बार थक जाती थी  
नन्हां नाती साथ होता
ऊँगली उसकी थामें रहता
व्यस्त सड़क पर जाने न देता
बहुत ध्यान  उसका रखता
था बहुत ही भोलाभाला
नन्हां सा प्यारा प्यारा... 
Akanksha पर Asha Saxena 
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Sunehra Ehsaas पर Nivedita Dinkar 
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बस ख्वाहिश यही है कि... 

मैं जीत जाऊं या मैं हार जाऊं, 
बस ख्वाहिश यही है कि 
मैं दरिया ये पार जाऊं... 
Nitish Tiwary -
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गांधी को किसने मारा ? 

गांधी को किसने मारा ? 
गोरे अंग्रेजों के जाने के बाद 
जिन्ना की जगह पंडित जी हुए प्यारा । 
सोंचों गांधी को किसने मारा ? 
सेकुलरिज्म के झंडाबदारों बताओ 
देश का प्रधान मोमिन क्यूँ नहीं हुआ 
और डॉ कलाम जैसा भी क्यूँ हारा ?  
सोंचों गांधी को किसने मारा ? ... 
चौथाखंभापरARUN SATHI 
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देश ठीके चल रहल हौ बापू! 

बेचैन आत्मा पर देवेन्द्र पाण्डेय 
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बापू हम शर्मिन्दा हैं 

नाथूराम गोडसे किसी व्यक्ति का नाम नहीं रहा है. यह एक विचारधारा है, जिसने हमारी सहिष्णुता की चूलें हिला दी हैं. जिस अहिंसा और घृणा के विरुद्ध आपने अपनी जान गँवाई थी, आज उसका मखौल बनाया जा रहा है. आपकी जय गाने वाले सभी राजनेता सिर्फ सत्ता सुख चाहते हैं. किस किस का नाम लूं, सबने कई कई मुखोटे पहन रखे हैं... 
जाले पर पुरुषोत्तम पाण्डेय 
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