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शनिवार, अगस्त 22, 2015

"बौखलाने से कुछ नहीं होता है" (चर्चा अंक-2075)

मित्रों।
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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सावन में बरसाती टोटके 

सावन ऐ सखी सगरो सुहावन 
रिमझिम बरसे ला मेघ रे 
सबके बलमउआ त आबे ला घरवा 
हमरो बलम परदेस रे... 
साझा संसार पर डॉ. जेन्नी शबनम 
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एक दिन और बीता 

हताशा जीवन की के लिए चित्र परिणाम
एक दिन और बीता
कुछ भी नया  नहीं हुआ
वही सुबह वही शाम
उबाऊ जीवन हो गया
फीकापन पसरा हुआ
सारा उत्साह खो  गया... 
Akanksha पर Asha Saxena 
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उनकी लियाकत 

उनको कभी भूलने नहीं देती 

देबू उस दिन मूड में था, उसने बताया कि उसकी कहीं पहुँच वगैरह नहीं हैं। वह तो पंद्रह-बीस छात्रों से पैसा लेकर कहीं घूमने निकल जाता है। उन पंद्रह-बीस में से आधे से ज्यादा तो जैसे-तैसे खुद ही पास हो जाते हैं, उन पर अपना रुआब जता उनके पैसे रख लेता हूँ और जो बिल्कुल ही निक्खद्ध होते हैं उन पर एहसान जता उनके पैसे वापस कर देता हूँ... 
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा 
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हाँफते हुए लोग 

ये हाँफते हुए लोगों का शहर है 
जो हाँफने लगते हैं 
अक्सर दूसरों के भागने / दौड़ने भर से 
उठा लेते हैं अक्सर परचम... 
vandana gupta 
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तुलसी के मानस में राम 

ह्रदय के सुन्दरतम भूमि में 
जिनके बुद्धि हुये महान 
मेघ रूप वो साधु बनकर 
बरसाये मंगल घट गान. 
सुन्दर शीतल सुखदाई सम 
मानसरोवर के वो नाम 
मंगलकारी तुलसी जी के 
मानस में रहते हैं राम. 
जनहित के हर सूत्र पिरोकर 
युग प्रश्नों का कर समाधान... 
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हर क्षेत्र की घुसपैठ से 

ज्‍योतिष अधिक बदनाम हुआ है !! 

आम जनता एक ज्‍योतिषी के बारे में बहुत सारी कल्‍पना करती है , ज्‍योतिषी सर्वज्ञ होता है , वह किसी के चेहरे को देखकर ही सबकुछ समझ सकता है , यदि नहीं तो कम से कम माथे या हाथ की लकीरे देखकर भविष्‍य को बता सकता है। यहां तक कि किसी के नाम से भी बहुत कुछ समझ लेने के लिए हमारे पास लोग आ जाते हैं... 
गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष पर संगीता पुरी 
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मैं जहाँ से आया हूँ 

तिश्नगी पर आशीष नैथाऩी 
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प्यार में पागल 

नाराज़ थी तुमसे न जाने कबसे 
पर जब बात हुई 
कुछ मैंने कही कुछ तूने कहीं 
मेरा कहा कितना सुना पता नहीं 
तेरी हर बात सीधी दिल में उतरी 
उन बातों को दिल में संजोती रही... 
ज़िन्दगीनामा पर Nidhi Tandon 
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ज़िन्दगी यूँ हो कि ज़न्नत की पनाहें हैं 

मेरी   पलकों   ने   रह - रह   के  उठाये  हैं 
तेरी   सूरत   तो   इन   आँखों  के  फाहें  हैं 
मैं   गुम   हो   गयी   उस  वीरान  बस्ती  में 
दूर   तक   मौजूद   जहाँ   पर   तेरे  साये  हैं  
मौजजा हो कि अगर तुम चले आओ साथी 
मैंने   दिए   उल्फ़त  के  राहों  में  जलायें  हैं... 
Lekhika 'Pari M Shlok' 
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धर्म - प्रतिस्पर्धा नहीं है 

विश्व धर्म–सभा में 
हर धर्म के विद्वानों का भाषण हो रहा था, 
अपने–अपने धर्म को 
सर्वश्रेष्ट प्रतिपादित कर रहा था.. 
कालीपद "प्रसाद" 
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पैरोडी  

कुछ ऐसे भी बेअक्ल होते हैं 

मन्ना डे का गाया हुआ एक गाना है,……  
" कुछ ऐसे भी पल होते है " 
उसी पर एक पैरोडी बनाई है; 
*कुछ ऐसे भी बेअक्ल होते हैं, 
जो अक्लमंदों की हर बात पे रोते है,* 
*समझते तो अपने को बड़े ज्ञानी है, 
परन्तु होते असल में खोते है। 
*कुछ ऐसे भी बेअक्ल होते हैं, जो ... 
अंधड़ ! पर पी.सी.गोदियाल "परचेत" 
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