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गुरुवार, जुलाई 09, 2015

"माय चॉइस-सखी सी लगने लगी हो.." (चर्चा अंक-2031)

मित्रों।
आज आदरणीय दिलबाग विर्क जी के यहाँ
नेट की कनेक्टीविटी नहीं है।
इसलिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक देखिए।

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व्यापमात्मा ! 

अंधड़ ! पर पी.सी.गोदियाल "परचेत" 
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बाँसुरी 

[दोहावली] 

गुज़ारिश पर सरिता भाटिया 
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कौन ये फ़ासला निभाएगा.. 

मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ 
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ 
एक जंगल है तेरी आँखों में 
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ... 

दुष्यन्त कुमार 

मेरी धरोहर पर yashoda agrawal 
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भाजपा के एक और गलत-ज्ञानी 

गुरुदेव रवींद्र नाथ ठाकुर भारत के 
बँगला साहित्य के शिरोमणि कवि थे.
उनकी कविता में प्रकृति के सौंदर्य और 
कोमलतम मानवीय भावनाओं का उत्कृष्ट चित्रण है.
"जन गण मन" उनकी रचित एक विशिष्ट कविता है 
जिसके प्रथम छंद को हमारे राष्ट्रीय गीत होने का गौरव प्राप्त है.
गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर, काव्यालय की ओर से, 
आप सबको यह कविता अपने मूल बंगला रूप में प्रस्तुत है...  
! कौशल ! पर Shalini Kaushik 
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कटु सत्य 

यह तो तय था जिस दिन हम मिले थे 
उससे बहुत पहले यह निश्चित हो गया था 
एक दिन हम मिलेंगे 
और एक दिन तुम मुझे छोड़ जाओगी 
या मैं तुम्हे छोड़ जाउंगा , 
कौन किसको छोड़ जायगा 
यह पता नहीं था... 
कालीपद "प्रसाद" 
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विचार : 

लड़की पैदा करना अनिवार्य है 

*कल* खुद पर केरोसीन छिड़ककर अत्महत्या करने वाली एक निःसंतान महिला का मृत्युपूर्व बयान कि ''परिवार एवं मोहल्ले वाले उसे बांझ-बांझ कहकर चिढ़ाते थे जिससे तंग आकर उसे यह कदम उठाना पड़ा '' यदि सत्य है तो अत्यंत दुर्भाग्य पूर्ण है कि क्यों अब भी हम '' बच्चा गोद लेने से कतराते है ''... 
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हो गया तलाक। 

विवाह के सातों फेरों में पत्नि अपने होने वाले पति से एक के बाद एक मांगती है वचन। पती भी सहर्ष बिना अर्थ जाने बिना दे देता है सात वचन एक अभिनेता की तरह। अदालत से कागज के कुछ टुकड़े प्राप्त कर घर आया कहा सबने हो गया तलाक। पर ये मासूम जो नहीं जानते तलाक का अर्थ भी उन्हे समझाने के लिये ये कागज के टुकड़े भी काफी नहीं है... 
मन का मंथन  पर kuldeep thakur 
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सृजन के सरोकार 

कलाकार होने के असल मायने क्या हैं
बुनियादी तौर पर दुनिया में 
उसका होना क्या और क्यों हैं... 
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ग़ज़ल 

"गिनते नहीं हो खामियाँ अपने कसूर पे" 

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) 


बहरे मज़ारिअ मुसमन अख़रब
मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़
मफ़ऊलु फ़ाइलातु मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
221 2121 1221 212
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इतना सितम अच्छा नहीं अपने सरूर पे
तुम खुद ही पुरज़माल हो अपने शऊर पे

इंसानियत को दरकिनार कर दिया तुमने
इतना नशे में चूर हो अपने गुरूर पे

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