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शुक्रवार, फ़रवरी 27, 2015

"परीक्षा के दिन ... " (चर्चा अंक-1902)

मित्रों।
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
आदरणीय राजेन्द्र कुमार जी 
डेढ़ माह के लिए बाहर हैं।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक। 
(डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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ये बिंदिया 

मन का पंछी पर शिवनाथ कुमार 
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शीर्षकहीन 

satywan verma saurabh 
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बचपना 

कभी गिरना, कभी उठना, 
कभी रोना, कभी हँसना । 
कभी सोना, कभी जगना, 
कभी हाथो के बल चलना ॥ 
माँ की एक झलक के लिए, 
कभी रोना, सुबकना । 
शायद यही है, मेरा बचपना... 
हिन्दी कविता मंच पर ऋषभ शुक्ला 
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शहर 

निविया पर Neelima Sharma
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मेरा दिल 

गुज़ारिश पर सरिता भाटिया 
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रोज़ 'मुसाफिर' सा फिरते हैं 

तेरी आस लगाये बैठे; 
गुज़रे जाने दिन कितने है। 
अब तो ये आलम है देखो; 
लोग मुझे पागल कहते हैं... 
पथ का राही पर musafir 
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आपका एक आराधक 

(वही 90 फीसद मूर्खों वाला) 

हे! पक्ष-विपक्ष के देवतागण 
अगर संभव तो आप सभी देवासूर संग्राम के 
इस धर्मयुद्ध को बन्दकर 
इस तुच्छ राष्ट्र के बारे में सोचिए। 
क्योंकि देर हो जाने के बाद 
हाथ मलते रह जाएगें... 
स्वयं शून्य पर Rajeev Upadhyay 
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लोरी ! 

अनुभूतिपरकालीपद "प्रसाद" 
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तार - तार छाया की चुनरी 

मुरझे सब हरियाली - जैसे , 
बदले गए सूरज के तेवर ; 
गरमी के काफ़िले आ गये , 
आज अतृप्ति धरे कन्धों पर... 
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खुशियों की सौगात लिए होली आई है।
रंगों की बरसात लिए, होली आई है।।

रंग-बिरंगी पिचकारी ले,
बच्चे होली खेल रहे हैं।

मम्मी-पापा दोनों मिल कर,
मठरी-गुझिया बेल रहे हैं।

पकवानों को साथ लिए, होली आई है।
रंगों की बरसात लिए, होली आई है... 

5 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    उम्दा समसामयिक लिंक्स

    जवाब देंहटाएं
  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  3. बच्चों की परीक्षा में बीच बीच में ऑफिस से भी छुट्टी लेनी पड़ी पढ़ाने के लिए..इस बीच ऑफिस-घर के काम काज के साथ ब्लॉग पर आना बहुत मुश्किल हुआ .. ..ब्लॉग भी घर जैसा है इसलिए याद आयी तो थोड़ा लिख छोड़ा .....घर से परीक्षा का भूत कल भाग जाएगा इसलिए मन को थोड़ा सुकून है ....अब परीक्षा का परिणाम का इन्तजार रहेगा ...आज आपने चर्चा मंच में टाइटल के साथ 'परीक्षा के दिन' की चर्चा की तो बहुत अच्छा ... इस हेतु आपका बहुत बहुत आभार!

    जवाब देंहटाएं

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