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सोमवार, दिसंबर 29, 2014

"साम्प्रदायिक दंगे और उनका इलाज" (चर्चा अंक-1842)

मित्रों।
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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यूँ सजे हैं... 

हर वर्ष की भांति २०१४ भी अपने बीतने की प्रतीक्षा कर रहा है और २०१५ आने की ! आशा है यह वर्ष ब्लॉग जगत में नए उत्साह और जोश का संचार करे और वह पुराने रूप में वापस लौटे! जो जाने -माने ब्लोग्स अब शांत हैं वहाँ फिर से चहल-पहल शुरू हो. *नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनाएँ!.. 
व्योम के पार पर Alpana Verma -
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ख़ामोशी 

किसी ने मुझसे कहा क्यों खामोश है इतना भुप्पी
अब तोड़ भी दे अपनी चुप्पी
मैंने कहा लोकतंत्र की हत्या देख रहा हूँ
उसके पुनर्जन्म की बाट जोह रहा हूँ
क्या गीता में श्रीकृष्ण की बात झूठी हो गई
अधर्म ही यहाँ रीति हो गई
खामोश हूँ मुझे खामोश ही रहने दो... 
Bhoopendra Jaysawal 
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बे~वजह प्यार.. 

तुम कहते हो 
"तुम्हें प्यार करता हूं.. बेवजह, 
प्यार करने के लिए 
क्या वजह होना ज़रूरी है... 
parul chandra 
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जन्नत से  इक परी   मेरे घर   में उतर आई है 
मेरे  दिल  के   दरीचे  में  बज  रही  शहनाई  है 

महताब   सा  चेहरा  है    होठों  पे  तबस्सुम 
दिल  के   सहन   पे  खुशिओं की सहर आई है   
मैं तो नानी बन गयी... 
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गिरहकट 

कितने धीमे से काटते हो गिरह 
मालूम चलने का सवाल कहाँ चतुराई 
यही है और बेहोशी का दंड तो 
भोगना ही होता है होश आने तक 
ढल चुकी साँझ को कौन ओढ़ाए 
अब घूंघट... 
vandana gupta 
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मेहसाना पोलिस व् प्रधानमंत्री मोदी 

प्रशंसा के हक़दार 

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  भारत वर्ष में सत्ता सभी ओर हावी है किन्तु कानून आज भी सत्ता से ऊपर है और ये दिखाई दिया है एक बार फिर जब मेहसाना पोलिस ने प्रधानमंत्री की पत्नी जशोदा बेन द्वारा मांगी गयी जानकारी को इसलिए देने से मना कर दिया कि यह जानकारी स्थानीय अन्वेषण ब्यूरो से सम्बंधित है और यह सूचना के अधिकार अधिनियम में छूट प्राप्त है... 
! कौशल ! पर Shalini Kaushik 
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आस और विश्वास 

पुष्पा मेहरा 
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 चारों ओर निस्तब्धता छाई है,रोशनी की छींटें लिये वाहन ठिठकते बढ़े जा रहे  हैं । मरकरी लाइट सिकुड़ी पड़ी  अँधेरा हरने में असमर्थ हैपरिंदे भी दुबके पड़े दूर-दूर तक  दिखाई नहीं देतेरेत की आँधी सा घना अंधकार बिखेरता कोहरा धीरे-धीरे नीचे  उतरने लगा। यह लो! टप-टप-टप करते उसके कण नीचे बिछने लगेवे तो बिछते ही जा रहे हैंधरती भीगती जा रही हैनम हो रहा है उसका हृदयाकाश ।
         एक मात्र धरती ही तो है जिसका अंतस पीड़ा व सुख समाने की शक्ति रखता है। चारों ओर मौन मुखर होने लगाउसने कुहासे के सिहरते क्रंदन को सुनापल भी न लगा,शीत से काँपते हाथों से अपना आँचल फैला उसे सहेज लिया।कोहरा झड़ता रहा,धरा के वक्ष में समाता रहा।
 ममता की पराकाष्ठा ही तो व्याप रही थी सर्वत्र...! 
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"नवगीत-राह को बुहार लो" 

झाड़ुएँ सवाँर लो।
राह को बुहार लो।।

वक्त आज आ गया
“रूप” आज भा गया
आदमी सुवास की
राह आज पा गया
लक्ष्य को पुकार लो।
झाड़ुएँ सवाँर लो... 

8 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    नए वर्ष के स्वागत में सब अभी से जुट गए हैं |
    उम्दा लिंक्स |

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर सोमवारीय चर्चा में 'उलूक' के सूत्र 'इक्तीस दिसम्बर इस साल नहीं आ पाये सरकार के इस फरमान का मान रखें' को स्थान देने के लिये आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  4. मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  5. धन्यवाद इस संकलन को हम तक पहुँचाने का...

    जवाब देंहटाएं
  6. सुन्दर चर्चा... 'सुहानो दृष्टि' को स्थान देने के लिए दिल से शुक्रिया....

    जवाब देंहटाएं
  7. BAHUT -BAHUT AABHAAR ! SHUKRIYA HAMARI RACHNA KO APNI CHARCHA MAIN SHAMIL KARNE HETU ! DOOSRI RACHNAYEN BHI SHAANDAAR HAIN JI !

    जवाब देंहटाएं
  8. Bahut hi sundar sankalan.
    meri post ko sthan mila..achchaa lagaa.
    Bahut -bahut aabhaar.

    जवाब देंहटाएं

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